Related to : Attendance
Means/Methods: Activity
Area: Attendance
Subject: Hindi
Level : Upper Primary
District: Kanpur Dehat
Teacher’s Name: डॉ० पूजा यादव
Topic : Academic (Attendance)
सारांश -
विद्यालय में व्यावसायिक कार्यशालाओं का आयोजन कर बालिकाओं को भविष्य में व्यावसायिक शिक्षा की ओर उन्मुख किया गया जिससे वे भविष्य में इसका प्रयोग कर आत्मविश्वास से जीवन यापन कर सके। कार्यशालाओं में अभिभावकों को बालिका शिक्षा के प्रति जागरूक किया गया जिससे विद्यालय में बालिकाओं की उपस्थिति में वृद्धि हुई।
उद्देश्य-
उच्च प्राथमिक विद्यालय खुजऊपुर में शिक्षिका जब नियुक्ति हुई तो वहाँ बालिकाओं का नामांकन, बालकों से कम था। विद्यालय में बालिकाओं के कम नामांकन व उपस्थिति के कारणों को जानने के लिए गाँव के बीच जाकर यह जानने का प्रयास किया तो पाया कि अधिकांश अभिभावक बालिकाओं को कक्षा एक से लेकर कक्षा पांच तक तो पढ़ाना चाहते थे ताकि उन्हें साधारण जोड़, घटाना, गुणा, भाग, लिखना एवं पढ़ना आ जाए लेकिन कक्षा पांच के बाद उच्च प्राथमिक विद्यालय में बालिकाओं को भेजने में उनकी रुचि नहीं थी। यहाँ उनका मानना यह था कि बालिकाएं विद्यालय में जाकर विज्ञान, इतिहास, भूगोल, संस्कृत सीखने की बजाय वह घर के काम सीखे जो विवाह उपरान्त उनके काम आए। ऐसी स्थिति में अभिभावकों की मानसिकता व मंतव्य को समझते हुए विद्यालय में व्यावसायिक कार्यशालाओं का आयोजन प्रारंभ किया गया, जिसमें उन्हें वह कौशल सिखाने के प्रयास किए गए जो विवाह उपरान्त तो उनके काम आए ही और साथ ही जीवन के हर क्षेत्र में उनके लिए उपयोगी रहें। इन कौशल संवर्धन कार्यशालाओं से प्रभावित होकर अभिभावकों ने बालिकाओं को विद्यालय भेजना शुरू किया, जिससे बालिकाओं का नामांकन व उपस्थिति बढ़ी। नामांकन व उपस्थिति बढ़ने से हम उनके अधिगम संप्राप्ति की दिशा में भी कार्य कर पाए। विद्यालय में आयोजित इन व्यावसायिक कार्यशालाओं के द्वारा बालिकाओं को शिक्षा के साथ-साथ किसी व्यावसायिक गतिविधि का ज्ञान व प्रशिक्षण देकर उन्हें भविष्य में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में आगे बढाने का कार्य किया गया। इसके माध्यम से बालिकाओं के विद्यालय में नामांकन, उपस्थिति को बढ़ाने का प्रयास भी किया गया।
क्रियान्वयन-
विद्यालय के संसाधन चूँकि सीमित थे, इसलिए व्यावसायिक कार्यशालाओं हेतु सामुदायिक सहभागिता को प्राथमिकता दी गयी। विद्यालय में व्यावसायिक कार्यशालाओं के आयोजन हेतु विभिन्न कौशलों में दक्ष स्थानीय व्यक्तियों, अभिभावकों, पुरातन छात्र-छात्राओं व साथी शिक्षक शिक्षिकाओं से संपर्क किया गया। साथ ही एन०जी०ओ० व अन्य विभागों जैसे खाद्य एवं प्रसंस्करण विभाग, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, आंगनबाड़ी आदि से भी संपर्क किया गया। इन सभी की उपलब्धता के अनुसार समय-समय पर विद्यालय में व्यावसायिक कार्यशालाओं का आयोजन किया गया जिसमें मास्क व हैंडबैग बनाना, जैम व जेली, टोमेटो सॉस, स्क्वैश, चिक्की बनाना, प्राकृतिक खाद बनाना, ग्रो बैग, बंदनवार, कढ़ाई, इको फ्रेंडली, पेपर बैग, मैट, फ्लॉवर मेकिंग, मेहंदी, रंगोली, मिक्स अचार बनाना नॉन फायर कुकिंग के अंतर्गत सलाद व सैंडविच बनाना सिखाया गया। खाद्य व प्रसंस्करण विभाग द्वारा कार्यशाला के पश्चात् बालिकाओं को प्रमाणपत्र भी वितरित किए गए। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र व आंगनबाड़ी की सहायता से पोषण संबंधी कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमें बालिकाओं को मॅस्ट्रअल हाइजीन, आयरन व फॉलिक एसिड टैबलेट्स की आवश्यकता, गर्भावस्था में लगने वाले टीकों का महत्त्व बढ़ती उम्र हेतु पोषक तत्वों का महत्त्व जैसे विषयों पर चर्चा कर इन्हें वर्तमान व भविष्य के लिए सजग व सचेत करने का प्रयास किया गया। इन कार्यशालाओं में बालिकाओं के साथ-साथ ग्रामीण महिलाओं व अभिभावकों को भी बुलाया गया। इन कार्यशालाओं के साथ-साथ समय-समय पर विद्यालय में हस्तकला प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया। इन हस्तकला प्रदर्शनी में बालिकाओं ने कार्यशालाओं में सीखी विभिन्न सामग्रियों का प्रदर्शन किया गया। इसमें उन्होंने अपने द्वारा बनाए गए सामग्रियों को न केवल प्रदर्शित किया बल्कि समस्त ग्रामवासियों के मध्य उसे बनाने की विधि को भी साझा किया। हस्तकला प्रदर्शनी में अपने द्वारा बनाए सामाग्रियों का प्रदर्शन करते हुए तथा उन सामानों को बनाने की विधि को ग्राम वासियों के मध्य साझा करते समय बालिकाओं का आत्मविश्वास देखते ही बनता था।
समय के अनुसार तीव्र गति से सामाजिक परिवर्तन के साथ विद्यार्थियों की आवश्यकता, समझने और सीखने की प्रक्रिया में भी बदलाव आया है। यही कारण है कि रचनात्मक कार्य बच्चे उस शिक्षण सामग्री और उस शिक्षण प्रक्रिया की ओर अधिक आकर्षित होते हैं जो उन्हें कुछ और स्वयं करके सीखने का अधिक अवसर प्रदान करती हो। ऐसी स्थिति में अध्यापन की परम्परागत शिक्षण शैलियाँ कक्षा-कक्ष के वातावरण को उदासीन बना देती है। अतः परंपरागत शिक्षण शैलियों को नवीन शिक्षण शैलियों से प्रतिस्थापित कर माहौल को जीवंत, ऊर्जावान और उपयोगी बनाने का प्रयास किया गया। इन व्यावसायिक कौशल आधारित कार्यशालाओं में आई.सी.टी. अर्थात सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया गया। यू-ट्यूब पर उपलब्ध ट्यूटोरियल वीडियो को प्रोजेक्टर और लैपटॉप के माध्यम से कार्यशालाओं में बच्चों को दिखाया गया और व्यावसायिक आधारित नवीन कौशलों व विधियों से उन्हें अवगत कराया गया।
प्रभाव-
समय समय पर आयोजित होने वाली इन व्यावसायिक कार्यशालाओं में जब हमने बालिकाओं की माताओं, बहनों व अभिभावकों को भी आमंत्रित किया तो अभिभावकों ने देखा कि विद्यालय में वह कार्य भी सिखाए जा रहे हैं जो भविष्य में बालिकाओं के काम आएँगे और उनके आत्मविश्वास में वृद्धि करेंगें। इन कार्यशालाओं और गतिविधियों से प्रभावित होकर अभिभावकों ने बालिकाओं को विद्यालय भेजना शुरू किया, जिससे बालिकाओं का नामांकन व उपस्थिति बढ़ी। आज विद्यालय में बालिकाओं की संख्या, बालकों से अधिक है। बालिकाओं का नामांकन व उपस्थिति बढ़ने से हम इनकी अधिकतम सम्प्राप्ति की दिशा में भी कार्य कर पाए, जिसके फलस्वरूप बालिकाओं ने जनपद व राज्य स्तर पर कई शैक्षिक, सांस्कृतिक व खेलकूद सम्बंधी प्रतियोगिता को जीता व ढेरों पुरस्कार प्राप्त किये। आज भी विद्यालय की बाल संसद व मीना मंच में बालिकाएं कई महत्वपूर्ण पदों को संभाले हुए हैं और विद्यालय हित में कई निर्णय ले रही हैं अर्थात स्पष्ट है कि शैक्षिक स्तर व हुनर के साथ साथ उनका आत्मविश्वास भी बढ़ा, जो इस नवाचार का उद्देश्य था।